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kumar vishvas kavita- ho kal gati se pare chirantan- हो काल गति से परे चिरंतन,

हो काल गति से परे चिरंतन   हो काल गति से परे चिरंतन, अभी यहाँ थे अभी यही हो। कभी धरा पर कभी गगन में, कभी कहाँ थे कभी कहीं हो। तुम्हारी राधा को भान है तुम, सकल चराचर में हो समाये। बस एक मेरा है भाग्य मोहन, कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो। न द्वारका में मिलें बिराजे, बिरज की गलियों में भी नहीं हो। न योगियों के हो ध्यान में तुम, अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो। तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन, मगर इसे ये खबर नहीं है। बस एक मेरा है भाग्य मोहन, अगर कहीं हो तो तुम यही हो।
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- kumar vishvas 'tumhen jeeno me aasani bahut hai- तुम्हें जीने में आसानी बहुत है

 तुम्हें जीने में आसानी बहुत है तुम्हें जीने में आसानी बहुत है तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने हमारी जात पहचानी बहुत है कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है इरादा कर लिया गर ख़ुदकुशी का तो खुद की आखँ का पानी बहुत है तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जाँ हमारे दिल ने भी मानी बहुत है

kumar vishvas kavita -खुद को आसान कर रही हो ना

खुद को आसान कर रही हो ना खुद को आसान कर रही हो ना  हम पे एहसान कर रही हो ना ज़िन्दगी हसरतों की मय्यत है फिर भी अरमान कर रही हो ना नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें कितना नुक्सान कर रही हो ना हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो जान-पहचान कर रही हो ना

kumar vishvas hothon par ganga ho- होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

  होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में जीते-जी इसका मान रखें मर कर मर्यादा याद रहे हम रहें कभी ना रहें मगर इसकी सज-धज आबाद रहे जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो

kumar vishvas-"तुम गये तुम्हारे साथ गया, अल्हड़ अन्तर का भोलापन।

 "तुम गये तुम्हारे साथ गया, अल्हड़ अन्तर का भोलापन। "तुम गये तुम्हारे साथ गया, अल्हड़ अन्तर का भोलापन। कच्चे-सपनों की नींद और, आँखों का सहज सलोनापन। जीवन की कोरों से दहकीं यौवन की अग्नि शिखाओं में, तुम अगन रहे, मैं मगन रहा, घर-बाहर की बाधाओं में, जो रूप-रूप भटकी होगी, वह पावन आस तुम्हारी थी। जो बूूंद-बूूंद तरसी होगी, वह आदिम प्यास तुम्हारी थी। तुम तो मेरी सारी प्यासे पनघट तक लाकर लौट गये, अब निपट-अकेलेपन पर हँस देता निर्मम जल का दर्पण। तुम गये तुम्हारे साथ गया अल्हड़ अन्तर का भोलापन यश -वैभव के ये ठाठ-बाट, अब सभी झमेले लगते हैं। पथ कितना भी हो भीड़ भरा दो पाँव अकेले लगते है हल करते -करते उलझ गया, भोली सी एक पहेली को, चुपचाप देखता रहता हूँ, सोने से मॅढ़ी हथेली को। जितना रोता तुम छोड़ गये, उससे ज्यादा हँसता हूँ अब पर इन्ही ठहाकों की गूजों में, बज उठता है खालीपन तुम गये तुम्हारे साथ गया, अल्हड़ अन्तर का भोलापन ।"(डा कुमार विश्वास)

"यदि स्नेह जाग जाए, अधिकार माँग लेना Latest poem of kumar vishvas

"यदि स्नेह जाग जाए, अधिकार माँग लेना "यदि स्नेह जाग जाए, अधिकार माँग लेना मन को उचित लगे तो, तुम प्यार माँग लेना दो पल मिले हैं तुमको, यूँ ही न बीत जाएँ कुछ यूँ करो कि धड़कन, आँसू के गीत गाएँ जो मन को हार देगा, उसकी ही जीत होगी अक्षर बनेंगे गीता, हर लय में प्रीत होगी बहुमूल्य है व्यथा का, उपहार माँग लेना यदि स्नेह जाग जाए, अधिकार माँग लेना जीवन का वस्त्र बुनना, सुख-दुःख के तार लेकर कुछ शूल और हँसते, कुछ हरसिंगार लेकर दुःख की नदी बड़ी है, हिम्मत न हार जाना आशा की नाव पर चढ़, हँसकर ही पार जाना तुम भी किसी से स्वप्निल, सँसार माँग लेना यदि स्नेह जाग जाए, अधिकार माँग लेना"...(डा कुमार विश्वास)

kumar vishvas kavita -Tum gajal ban gaye geet me dhal gaye- तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई

तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक रोज आता रहा, रोज जाता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद् मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी दृष्टि आकाश में आस का एक दिया तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा तुम चली गई तो मन अकेला हुआ सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर रूठती तुम रही मैं मानता रहा तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक रोज आता रहा, रोज जाता रहा

सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे

सब तमन्नाएँ हों पूरी, कोई ख्वाहिश भी रहे चाहता वो है, मुहब्बत में नुमाइश भी रहे आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश भी रहे मुझको मालूम है मेरा है वो मै उसका हूँ उसकी चाहत है की रस्मों की ये बंदिश भी रहे मौसमों में रहे 'विश्वास' के कुछ ऐसे रिश्ते कुछ अदावत भी रहे थोडी नवाज़िश भी रहे

चेहरे पर चँचल लट उलझी

चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं कुछ तुम भूली कुछ मैं भूला मंज़िल फिर से आसान हुई हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार जुड़ गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं आओ हम दोनों की सांसों का एक वही आधार रहे सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं

आना तुम मेरे घर अधरों पर हास लिये

आना तुम मेरे घर अधरों पर हास लिये तन-मन की धरती पर झर-झर-झर-झर-झरना साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन मेरे तट आना एक भीगा उल्लास लिये आना तुम मेरे घर अधरों पर हास लिये जब तुम आओगी तो घर आँगन नाचेगा अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल, अरूणिम-अरुणिम पायल की ध्वनियों में गुंजित मधुमास लिये आना तुम मेरे घर अधरों पर हास लिये

बादड़ियो गगरिया भर दे

बादड़ियो गगरिया भर दे बादड़ियो गगरिया भर दे प्यासे तन-मन-जीवन को इस बार तो तू तर कर दे बादड़ियो गगरिया भर दे अंबर से अमृत बरसे तू बैठ महल मे तरसे प्यासा ही मर जाएगा बाहर तो आजा घर से इस बार समन्दर अपना बूँदों के हवाले कर दे बादड़ियो गगरिया भर दे सबकी अरदास पता है रब को सब खास पता है जो पानी में घुल जाए बस उसको प्यास पता है बूँदों की लड़ी बिखरा दे आँगन मे उजाले कर दे बादड़ियो गगरिया भर दे बादड़ियो गगरिया भर दे प्यासे तन-मन-जीवन को इस बार तू तर कर दे बादड़ियो गगरिया भर दे
*************ऐसे बारिश में हम कहाँ पर हैं************** "लाख भीगे ज़मीन का आँचल,लाख किरनों की आखँ गीली हों , चाहे रोये सुबह की तन्हाई या कि शामें उदास पीली हों , तुम को क्या काम ये पता रख्खो, ऐसे बारिश में हम कहाँ पर हैं , तुम को ये वक़्त क ी इज़ाज़त कब,किस के सीने में गम कहाँ पर हैं , ठीक भी है कि तुम खुदा हो मेरे,और बस एक का खुदा कब है , मेरे होने ,ना होने का मतलब तुम्हारे वास्ते जुदा कब है.....!" "कोई कब तक फ़क़त सोचे, कोई कब तक फ़क़त गाए, इलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाए ? मेरा महताब उस की रात के आगोश में पिघले , मैं उस की नींद में जागूँ वो मुझ में घुल के सो जाए

उस पगली लड़की के बिन

  उस पगली लड़की के बिन अमावस कि काली रातों में, दिल का दरवाज़ा खुलता है जब दर्द कि प्याली रातों में, ग़म आँसू के संग घुलता है जब पिछवाड़े के कमरे में, हम निपट अकेले होते हैं जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं जब बार-बार दोहराने से, सारी यादें चुक जाती हैं जब ऊँच-नीच समझाने में, माथे की नस दुख जाती हैं तब इक पगली लड़की के बिन, जीना ग़द्दारी लगता है पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है जब पोथे खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं, अफ़साने गाली होते हैं जब बासी-फीकी धूप समेटे, दिन जल्दी ढल जाता है जब सूरज का लश्कर छत से, गलियों में देर से आता है जब जल्दी घर जाने की इच्छा, मन ही मन घुट जाती है जब दफ़्तर से घर लाने वाली, पहली बस छुट जाती है जब बेमन से खाना खाने पर, माँ गुस्सा हो जाती है जब लाख मना करने पर भी, कम्मो पढ़ने आ जाती है जब अपना मनचाहा हर काम, कोई लाचारी लगता है तब इक पगली लड़की के बिन, जीना ग़द्दारी लगता है पर उस पगली लड़की के बिन, मरना भी भारी लगता है जब कमरे में सन्नाटे की, आवाज़ सुनाई देती है जब दर्पण में आँ...

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये , ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये , घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले , अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले , लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये , भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये , सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में , नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे , अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे… लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं , कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं , वो लडाई को भले आर पार ले जाएँ , लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ , जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे

मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊंगा

मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊंगा   मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊंगा जागती रहना, तुझे तुझसे चुरा ले जाऊंगा हो के क़दमों पर निछावर फूल ने बुत से कहा ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुश्बू बचा ले जाऊंगा कौन-सी शै तुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊंगा क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊंगा शोहरतें जिनकी वजह से दोस्त-दुश्मन हो गए सब यहीं रह जाएंगी मैं साथ क्या ले जाऊंगा

koi deevan kahta hai koi pagal samajhta hai - कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है, मैं तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी है ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है !!! समुँदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता ये आसुँ प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता , मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता !!! मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है, यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूँ हैं जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है !!! भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा, अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मोहब्बत का मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा !!!

ओ मेरे पहले प्यार !

 ओ मेरे पहले प्यार ! ओ प्रीत भरे संगीत भरे! ओ मेरे पहले प्यार ! मुझे तू याद न आया कर ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे! नस नस के पहले ज्वार! मुझे तू याद न आया कर। पावस की प्रथम फुहारों से जिसने मुझको कुछ बोल दिये मेरे आँसु मुस्कानो की कीमत पर जिसने तोल दिये जिसने अहसास दिया मुझको मै अम्बर तक उठ सकता हूं जिसने खुदको बाँधा लेकिन मेरे सब बंधन खोल दिये ओ अनजाने आकर्षण से! ओ पावन मधुर समर्पण से! मेरे गीतों के सार मुझे तू याद न आया कर। मूझे पता चला मधुरे तू भी पागल बन रोती है, जो पीङा मेरे अंतर में तेरे दिल में भी होती है लेकिन इन बातों से किंचिंत भी अपना धैर्य नही खोना मेरे मन की सीपी में अब तक तेरे मन का मोती है, ओ सहज सरल पलकों वाले! ओ कुंचित घन अलकों वाले! हँसते गाते स्वीकार मुझे तू याद न आया कर। ओ मेरे पहले प्यार मुझे तू याद न आया कर

" बड़ी मुश्किल से आया है ... वो ख़्वाबों में मेरे ।

" बड़ी मुश्किल से आया है ... वो ख़्वाबों में मेरे ।   " बड़ी मुश्किल से आया है ... वो ख़्वाबों में मेरे । ज़रा देर ..उसकी बाहों में ..सोने तो दो ।। उम्र तो न गुज़र सकी साथ उसके .. दो पल को उसकी साँसों ..में खोने तो दो ।। वो भर ले आगोश में ..क्या बिगड़ जाएगा ? गर मुझे प्यार करले..किसी का क्या जाएगा ? कुछ पलों को मुझे ..उसी का हो लेने दो ।। ज़रा देर उसकी बाहों ......।।।। आज मिला है वो बरसों में...मुझसे मगर ; चाहत अभी भी लाया है ...आँखों में भरकर । उसके सीने से लग के ...खूब रो लेने दो ।। ज़रा देर उसकी बाहों ......।।।। "
  तुम्हें दिल ने पुकारा है चले आओ ,चले आओ... तुम्हें दिल ने पुकारा है चले आओ ,चले आओ... ना तरसाओ ,ना तड़पाओ. चले आओ, चले आओ हवा भी हो के निश्चल सुन रही है ,टूटती सांसें नज़र भी थक रही है छोड़ ना बैठे कहीं आसें है नाज़ुक दिल बहुत मेरा जरा इस पर तरस खाओ चले आओ ,चले आओ..... खनक मेरी हंसी की खो गयी जाने कहाँ जानां रुके पलकों पे ,ना सीखा यूँही अश्को ने बह जाना हुई गुम मैं कहीं खुद में मुझे तुम मुझसे मिलवाओ चले आओ ,चले आओ...... ये मौसम ये हवाएं छेड़ते हैं जब मेरी अलकें तभी तुम चुपके आके मूँद लेते हो मेरी पलकें हकीक़त में बदल दो ये तस्सवुर ,अब ना भरमाओ चले आओ ,चले आओ......

kumar vishvas bansuri chali aao hoth ka nimantran hai बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है तुम अगर नहीं आईं, गीत गा न पाऊंगा साँस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाऊंगा तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है शाम की उदासी में याद संग खेला है कुछ ग़लत न कर बैठे मन बहुत अकेला है औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है बाँसुरी चली आओ होंठ का निमंत्रण है तुम अलग हुईं मुझसे साँस की ख़ताओं से भूख की दलीलों से, वक्त क़ी सज़ाओं से दूरियों को मालूम है, दर्द कैसे सहना है ऑंख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है कंचनी कसौटी को खोट का निमंत्रण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।