"तुम गये तुम्हारे साथ गया,
अल्हड़ अन्तर का भोलापन।
"तुम गये तुम्हारे साथ गया,
अल्हड़ अन्तर का भोलापन।
कच्चे-सपनों की नींद और,
आँखों का सहज सलोनापन।
जीवन की कोरों से दहकीं
यौवन की अग्नि शिखाओं में,
तुम अगन रहे, मैं मगन रहा,
घर-बाहर की बाधाओं में,
जो रूप-रूप भटकी होगी,
वह पावन आस तुम्हारी थी।
जो बूूंद-बूूंद तरसी होगी,
वह आदिम प्यास तुम्हारी थी।
तुम तो मेरी सारी प्यासे
पनघट तक लाकर लौट गये,
अब निपट-अकेलेपन पर हँस देता
निर्मम जल का दर्पण।
तुम गये तुम्हारे साथ गया
अल्हड़ अन्तर का भोलापन
यश -वैभव के ये ठाठ-बाट,
अब सभी झमेले लगते हैं।
पथ कितना भी हो भीड़ भरा
दो पाँव अकेले लगते है
हल करते -करते उलझ गया,
भोली सी एक पहेली को,
चुपचाप देखता रहता हूँ,
सोने से मॅढ़ी हथेली को।
जितना रोता तुम छोड़ गये,
उससे ज्यादा हँसता हूँ अब
पर इन्ही ठहाकों की गूजों में,
बज उठता है खालीपन
तुम गये तुम्हारे साथ गया,
अल्हड़ अन्तर का भोलापन ।"(डा कुमार विश्वास)
तुम गये तुम्हारे साथ गया
जवाब देंहटाएंone of my fav. poem
Very nice
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