बुधवार, 28 अगस्त 2013

*************ऐसे बारिश में हम कहाँ पर हैं**************

"लाख भीगे ज़मीन का आँचल,लाख किरनों की आखँ गीली हों ,
चाहे रोये सुबह की तन्हाई या कि शामें उदास पीली हों ,
तुम को क्या काम ये पता रख्खो, ऐसे बारिश में हम कहाँ पर हैं ,
तुम को ये वक़्त की इज़ाज़त कब,किस के सीने में गम कहाँ पर हैं ,
ठीक भी है कि तुम खुदा हो मेरे,और बस एक का खुदा कब है ,
मेरे होने ,ना होने का मतलब तुम्हारे वास्ते जुदा कब है.....!"


"कोई कब तक फ़क़त सोचे, कोई कब तक फ़क़त गाए,
इलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाए ?
मेरा महताब उस की रात के आगोश में पिघले ,
मैं उस की नींद में जागूँ वो मुझ में घुल के सो जाए