मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

kumar vishvas bansuri chali aao hoth ka nimantran hai बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

तुम अगर नहीं आईं, गीत गा न पाऊंगा
साँस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाऊंगा
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
शाम की उदासी में याद संग खेला है
कुछ ग़लत न कर बैठे मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुईं मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से, वक्त क़ी सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है, दर्द कैसे सहना है
ऑंख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचनी कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

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