बुधवार, 13 जुलाई 2016

kumar vishvas kavita- ho kal gati se pare chirantan- हो काल गति से परे चिरंतन,

हो काल गति से परे चिरंतन

 
हो काल गति से परे चिरंतन,
अभी यहाँ थे अभी यही हो।
कभी धरा पर कभी गगन में,
कभी कहाँ थे कभी कहीं हो।
तुम्हारी राधा को भान है तुम,
सकल चराचर में हो समाये।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
कि जिसमें होकर भी तुम नहीं हो।
न द्वारका में मिलें बिराजे,
बिरज की गलियों में भी नहीं हो।
न योगियों के हो ध्यान में तुम,
अहम जड़े ज्ञान में नहीं हो।
तुम्हें ये जग ढूँढता है मोहन,
मगर इसे ये खबर नहीं है।
बस एक मेरा है भाग्य मोहन,
अगर कहीं हो तो तुम यही हो।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बस एक मेरा है भाग्य मोहन कि जिस में होकर भी तुम नहीं हो॰॰👌👌👌🙏🙏❤

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  3. Mai Apko sunta hu ....
    Har sabd me aisa lagta hai suraj ka prakash hai..
    Aisa lagta hai ki Mai to Abhi jaga hu

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  4. Hum apki soch or kavita k murid h....... Aap jag me isi tarah roshan felate rhna..... Tassali hooti h ki koi to h bolne wala

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