बुधवार, 13 जुलाई 2016

kumar vishvas kavita -खुद को आसान कर रही हो ना

खुद को आसान कर रही हो ना

खुद को आसान कर रही हो ना
 हम पे एहसान कर रही हो ना

ज़िन्दगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना

नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें
कितना नुक्सान कर रही हो ना

हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो
जान-पहचान कर रही हो ना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें